Friday, February 23, 2018

कुछ तो बाकी है... कहानी संग्रह




                 "स्त्री विमर्श-एक नए फ़्लेवर में"
 
इस संग्रह की सभी कहानियाँ ख़ुद ब ख़ुद स्त्री विमर्श की बनती चली गईं, मैंने न तो ऐसा सोचा था न इसके लिए कोई विशेष प्रयास ही किया था । यह सभी क़िस्से किसी-न-किसी प्रेरणा अथवा अनुभव पर आधारित है । इन किस्सों को कहानी बनाने के लिए मैंने इनमें भावनात्मक सत्य को प्रकट करने की कोशिश की है । हर कहानी के भीतर उसकी मनोवैज्ञानिक पराकाष्ठा क्या होगी ? मनोवैज्ञानिक आधार क्या होगा ? इन प्रश्नों से बार-बार, हर कहानी से पहले मैं जूझती रही हूँ । हांलाकि इस प्रयास में कितनी हद तक मुझे सफलता प्राप्त हुई, यह मैं आप पर छोड़ती हूँ ।

      इन कहानियों के पात्र कहीं भी अपनी स्थिति से समझौता नहीं करते । रोते-कलपते नहीं हैंऔर न वे दयनीय हैं, बल्कि वे तो धारा के विरूद्ध जाकर अपनी जीजाविषा के लिए संघर्ष करते हुए जीवन में अपना एक मार्ग निर्धारित करते हैं । कहीं-कहीं पर ये पात्र "अपोर्चूनिस्ट" और स्वार्थी भी बनें हैं । एक कहानी "छत की आस" में पिता अपनी बेटियों की मौत पर कहता है "काश वे किसी के साथ भाग ही जातीं", एक अन्य कहानी "रिंग-अ-रिंग ओ' रोजेज" में उसकी पात्र भित्ती अपने परिवार को परेशानी व गरीबी से बचाने के लिए अपने कैंसर पीडित पति को अकेला छोड कर आ जाती है और परिवार वाले उसकी मौत की खबर को ही सच मानने लगते हैं । इसीलिए इन्हें "स्त्री विमर्श की कहानियाँ-एक नए फ़्लेवर में" कहना मुझे उचित लगा । कहन शैली में लिखी गई मेरी इन सभी कहानियों में कहीं पर भी मैंने अपने आप को "इंटेलेक्चुअल" सिद्ध करने के लिए ज़बरन शब्दों को ठूंसनें का प्रयास नहीं किया, न ही साहित्यिक ज्ञान बघारने की कोशिश करते हुए भारी-भरकम शब्दों का ज़बरदस्ती प्रयोग किया है । जब कभी प्राकृतिक रूप से विस्तार की संभावना लगी है तो मैंने उसका फ़ायदा भी लिया है । कहीं-कहीं पर स्वाभाविक तौर से कवितामय रंग उत्पन्न हुआ है तो कहानी के संदर्भ में ही सीमित रहते हुए वाक्यों में उसका प्रसार भी किया है । मैं "टू द पांइट" लिखने की पक्षधर हूँ किन्तु घटनाओं के बीच में रोचकता व ताजगी उत्पन्न करने के प्रयास में कुछ घुमाव तो यकीनन मैंने लिए हैं, अपनी स्मृतियों में अंकित कुछ बातें औरकुछ यादेंमैंने ज्यों कि त्यों भी लिखीं हैं मगर यहां किसी के मुखौटे खींचकर कहानियाँ लिखने का कार्य नहीं किया है । किसी के जीवन से प्रेरणा पाकर कलम जरूर चलाई है परन्तु सिर्फ "फ्लेवर"उठाने भर का सत्य लिया है ।तथ्यों पर पर रिसर्च करते हुए उस प्लॉट में अपनी बात कही है । बेहतर लिखने का प्रयत्न जारी रहेगा इसी उम्मीद के साथ ।
- रजनी मोरवाल

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